Tuesday, January 10, 2012

क्या यही लोकतंत्र है ?

उतरप्रदेश और देश के चार अन्य राज्यों में इस माह के अंत और अगले महीने विधान सभा चुनाव
होने जा रहे हैं ,लोकतंत्र का यह पर्व उत्साह और निष्पक्षता से संपन्न हो इसलिए चुनाव आयोग की
तरफ से कई प्रकार के कदम उठाये जा रहे हैं | उत्तरप्रदेश  के  पार्कों  और  सार्वजानिक  स्थलों  पर  लगे  सुश्री  मायावती , श्री  कांशीराम  और हाथी  के पुतलों और मूर्तियों को चुनाव होने  तक  कपडे  से  ढक  देने  के  दिशा निर्देश अधिकारीयों को दिए गए है | चुनाव  आयोग  के  इन  दिशा  निर्देशों  ने  कुछ  नए  विवादों  को  जन्म दे दिया है |
लोकतंत्र की मांग यहीहै किचुनाव निष्पक्ष हो, निश्चय ही हाथी सुश्री मायावती जी की पार्टी का चुनाव चिन्ह है और  वह  अन्य  राजनैतिक दलों के चुनाव चिन्हों की भेट में, अपनी पार्कों और सार्वजानिक स्थलों पर उपस्थिति के कारण अधिक दृष्टिगोचर होगा, संभवतः चुनाव आयोग को ऐसा अनुभव हुआ है कि इससे सुश्री मायावती जी की पार्टी को चुनाव में फायदा मिल सकता है | प्रश्न ये है क्या कल चुनाव आयोग महारष्ट्र में चुनावों के समय ट्रेनों के परिचालन को भी बंद कर देगा कियुंकि ट्रेन इंजिन एक राजनैतिक दल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का चुनाव चिन्ह है ? देश भर में लगे उन हजारों मूर्तियों और पुतलों का क्या जो कांग्रेस पार्टी की याद दिलाते है ? देश के प्रायः हर एक गाँव और शहर में कम से कम एक रोड या कालोनी का नाम श्री महात्मा गाँधी,  स्व. इंदिरा गाँधी, स्व. जवाहरलाल नेहरु अथवा स्व. राजीव गाँधी जी के नाम पर है ये सभी राजनेता कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं ? देश भर न जाने कितने तालाब है जिनमे कमल के फूल [बी जे पी का चुनाव चिन्ह ] उगते है क्या भविष्य में चुनाव आयोग इन सभी तालाबों पर कर्मचारी नियुक्त करने जा रहा है जो इन फूलों पर आम आदमी की नज़र पड़ने से पहले ही फूलों को तोड़ लें ? क्या हिन्दू धरम के उन सभी देवी देवतों के मंदिर जिन में कमल के फूलों के चित्र है, चुनाव आचार संहिता लागु होते ही चुनाव पुरे होने तक बंद कर दिए जायेंगे ?
वास्तव में देखा जाये तो प्रत्येक राजनैतिक दल जब भी सत्ता में आता है तो अपने ही दल के नेताओं के नाम पर संस्थओं और योजनाओं  का नामकरण करता है और चुनाव के समय इनसे फायदा उठाने का प्रयत्न करता है | वास्तव में देखा जाये तो अब समय आ गया है कि हम अपने लोकतंत्र की संहिता पर फिर से विचार करें और उसे समयनुसार परिवर्तित कर लें | मेरा प्रस्ताव है कि
१] देश में स्थित सभी संस्थानों, पार्कों, सार्वजानिक स्थलों,  रहवासी कालोनियों  और सड़कों [ जिनके नाम  किसी भी राज नेता के नाम पर है ] के नाम परिवर्तित करके उन समाज सेवियों के नाम पर रखना चाहिए जिनका अपने जीवन काल में किसी भी राजनैतिक दल से कोई सम्बन्ध नहीं रहा हो|
२]आज प्रायः सभी चुनाव इलेक्ट्रोनिक मशीनों द्वारा होते है अतः ये स्पष्ट है कि देश का हर नागरिक इतना तो समझदार है कि वो जानता है कि वो किसे वोट दे रहा है इसलिए ये सही कदम होगा कि राजनैतिक दलों को चुनाव चिन्ह देने की प्रथा को समाप्त कर दिया जाये |
३] किसी भी सरकारी योजना को किसी भी राजनेता का नाम देने पर पाबन्दी लगा देना चाहिए |
४] किसी भी राजनेता  का स्मारक बनाने के लिए न तो सरकारी जमीन दी जानी चाहिए और न ही किसी भी प्रकार की आर्थिक साहयता दी जानी चाहिए | यदि कोई राजनैतिक दल अपने किसी भी नेता का स्मारक बनाना चाहता है तो उसे अपने खर्चे पर यह कार्य करने की अनुमति होगी परन्तु इसकेलिए ये अनिवार्य होगा कि जिन व्यक्तियों अथवा संस्थओं से आर्थिक सहयोग लिया गया है उनकी सूची स्मारक के दर्शनीय स्थल पर दी जाये |
५] चुनाव के समय लगने वाले बड़े बड़े होर्डिंग्स और बोर्ड्स पर, शहर भर की दीवारों पर लगने वाले पोस्टर्स पर पाबन्दी लगा देना चाहिए |

No comments: