Sunday, January 12, 2014

क्या कांग्रेस फिर से सरकार बना सकती है ?

लोकसभा चुनावों से लगभग चार माह पूर्व देश के नागरिकों का बहुत बड़ा वर्ग साधारण रूप से इस प्रश्न  का सकारात्मक उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ अनुभव कर रहा है।  केवल नागरिक ही क्यूँ स्वयं कांग्रेस के नीतिकार भी इस विषय में स्पष्ट मत प्रदर्शन से बचते नज़र आ रहें है , विपक्षी दल तो कांग्रेस के फिर से सरकार बना सकने की सम्भावनाओं को भी नकारते फिर रहें है। 
यह सही है कि UPA सरकार महंगाई , भृष्ट्राचार, बेरोजगाजरी जैसे मुद्दों पर पूर्णतः घिरी नज़र आ रही है यहाँ तक की प्रधानमंत्री स्वयं असफलता की बात स्वीकार कर चुके है , फिर भी क्या देश की १२८ साल पुरानी और लगभग ६ दशकों तक केंद्र में शासन करनेवाली पार्टी को इस प्रकार से नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? क्या वास्तव में कांग्रेस के पास चुनावी पराजय के अतिरिक अन्य कोई विकल्प शेष नहीं है ? 
वैसे कई राजनैतिक विश्लेषकों और कांग्रेस के पुराने नीतिकारों का मत है कि वर्त्तमान अवस्था में , विशेषकर आम आदमी पार्टी के लोकसभा चुनावों में भाग लेने की घोषणा के बाद , लोकसभा चुनावों की परिणिति एक त्रिशंकु संसद के रूप में होगी और अधिक सम्भावना है कि दिल्ली की तरह किसी एक अथवा अधिक दलों को समर्थन देकर या UPA के अनुभव के आधार पर कांग्रेस के सरकार में बने रहने की क्षीण सी आशा है।  
आप चाहे तो इसे मेरा कांग्रेस प्रेम भी कह सकते हैं या फिर लम्बे अरसे से कांग्रेस के शासन में रहने की आदत परन्तु फिर भी न जाने क्यूँ मेरा मन कांग्रेस की इस प्रकार की अवहेलना से सहमत नहीं हो रहा है।  मेरा कहना है कि देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी को इस तरह से न तो हाशिये पर धकेला जा सकता है और न ही यह उचित भी होगा।  अब प्रश्न उठता है कि केंद्र में फिर से सरकार बनाने के लिए कांग्रेस  पास कौन कौन से विकल्प शेष रहते हैं क्यूंकि कांग्रेस यह भी अच्छी तरह से जानती और समझती है कि यदि २०१४ में बीजेपी श्री मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो कांग्रेस केवल पांच वर्षों तक नहीं परन्तु एक लम्बे काल के लिए सत्ता से दूर हो जायेगी।  कांग्रेस के नीतिकार इस बात से भी बड़ी अच्छी तरह से परिचित है कि सत्ता से दूर रहने का अर्थ है कांग्रेस के विघटन का आरंभ। इस बात को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि दिल्ली में अधिकांश विजयी विधायकों के विरोध के बाद भी, शीर्ष नेतृत्व ने , कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसनेवाली आम आदमी पार्टी को बिन मांगें ही समर्थन दे दिया।  अब देखिये अप्रत्यक्ष रूप में कांग्रेस दिल्ली में शासन में हैं क्यूंकि आम आदमी पार्टी की सरकार कांग्रेस की वैसाखी पर ही टिकी हुई है।  आम आदमी पार्टी भी इस वैसाखी को स्पष्ट अनुभव करती है सम्भवतः इसी कारण सरकार बनाने के साथ ही आम आदमी पार्टी की टिप्णियों और विरोध में अब बीजेपी को कांग्रेस की अपेक्षा अधिक स्थान मिलने लगा है।  
हमारा इस लेख का उद्देश्य दिल्ली की सरकार नहीं, लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के पास उपलब्ध पर्यायों पर चर्चा करना है तो आइये देखते हैं कि कांग्रेस के पास कौन कौन से पर्याय शेष रहते हैं। 
[१] कांग्रेस को सर्वप्रथम अपने प्रधानमंत्री के प्रत्याशी जो अघोषित रूप से श्री राहुल गांधी है की यथासम्भव शीघ्र घोषणा कर देनी चाहिए।  इस घोषणा की देरी कांग्रेस को वही नुकसान पहुंचा सकती है जो बीजेपी को दिल्ली में डॉक्टर हर्षवर्धन के नाम को देर से घोषित करने के कारण हुआ था।  
[२] कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव के लिए अकेले अर्थात बिना किसी अन्य दल के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के चुनाव लड़ने की घोषणा और तैयारी करनी चाहिए।  मैं जनता और समझता हूँ कि कांग्रेस के पुराने नीतिकारों को यह बात न केवल हज्म नहीं होगी   परन्तु साथ ही आत्मघाती भी अनुभव होगी परन्तु मेरा कहना है कि समय के साथ बदलाव भी आवश्यक है साथ ही यह भी समझना आवश्यक है कि वर्त्तमान परिस्थितयों में, चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ भी  कांग्रेस के लिए वैसे भी इस चुनाव में जीत प्राप्त करने की सम्भावनायें कम ही हैं। 
[३] जैसे समाचार मिल रहें कि कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति में परिवर्तन करने जा रही है : बैंगलोर में राहुल गांधी ने चुनाव घोषणापत्र के बारे विद्यार्थियों से चर्चा की , इसीलिए भी यह आवश्यक है कि २०१४ में कांग्रेस देश के सामने एक नए रूप में आये। 
[४] जनवरी अंत अथवा अधिकतम फरवरी मध्य तक कांग्रेस को अपने सभी लोकसभा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर देनी चाहिए जिससे न केवल घोषित प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए समय मिलेगा साथ ही कांग्रेस को दल छोड़कर जानेवाले वर्त्तमान नेताओं से मुकाबला करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए भी प्रचुर समय प्राप्ति होगी। 
[५] देश में युवा मतदाताओं की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को कम से कम २०० ऐसे प्रत्याशियों को अवसर देना चाहिए जिन की आयु ४० वर्ष या उससे कम हो। 
[६] देश के प्रायः हर भाग में जनाधार रखनेवाली कांग्रेस के लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं है कि दल ऐसे व्यक्ति ढूंढ निकाले जो चाहे राजनीती में हो अथवा नहीं परन्तु अपने अपने क्षेत्र में जिनकी सामाजिक छवि स्वच्छ तथा प्रभावी हों। ऐसे प्रत्याशियों के चयन से कांग्रेस देश को यह सन्देश दे सकती है कि भृष्ट्राचार विरोधी उसकी निति केवल बातों तक सिमित नहीं है। 
[७] कांग्रेस को देश के मतदाताओं को यह भी समझाने की आवश्यकता है कि प्रभावी सरकार के प्रबंधन के लिए युवा जोश के साथ अनुभव का भी महत्व होता है। 
[८] कांग्रेस को देश के नागरिकों को स्पष्ट मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए गठबंधन सरकार के कारण निर्णयों पर होने वाले प्रभावों के विषय में शिक्षित करना चाहिए।  दो बार केंद्र में तथा कई राज्यों में गठबंधन सरकार चलाने के अनुभव के कारण कांग्रेस के लिए यह कार्य कठिन नहीं है।  
[९] कांग्रेस को अपने प्रत्याशियों में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषिज्ञों का समावेश करने के साथ साथ यह बात भी घोषित कर देनी चाहिए कि चुनाव जीतने के बाद इन्ही में से संबधित विभाग के मंत्री बनाये जायेंगें।  
[१०] अंतिम परन्तु सब से अधिक महत्वपूर्ण कांग्रेस को चाहिए कि चाहे वह टेलीविजन हो या समाचार पत्र अथवा सोशल मीडिया हर जगह अपने चुनाव घोषणा पत्र के प्रचार और प्रसार पर अधिकाधिक ध्यान दें और यथासम्भव भुत की चर्चा से बचने का प्रयास करे। 

Friday, January 10, 2014

लोकसभा चुनाव २०१४ और मेरा घोषणापत्र [२] शिक्षा और कर प्रणाली

शिक्षा और विशेषकर ग्रामीण भारत में शिक्षा सुविधाओं के विस्तार के लिए हमारे दल की योजना है 
[१] शिक्षा को राज्यों की सूचि से निकालकर केंद्र की सूचि में सम्मिलित किया जायेगा जिससे सम्पूर्ण देश में पाठयक्रम और शिक्षा के स्तर को एकसमान रखने में सहायता हो। 
[२] शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करके सरकारी स्कूल्स की संख्या और गुणवता में वृद्धि के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी सम्भव प्रयत्न किये जायेंगे। 
[३] चरणबद्ध रूप में कक्षा बारहवीं तक की शिक्षा को सभी बच्चों के लिए अनिवार्य और मुफ्त बनाया जायेगा। [४] भूमिहीन ग्रामीण , एक एकड़ से कम भूमि वाले किसान , तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी तथा निजी क्षेत्र के कामगार जिनकी वार्षिक आय रु. ६०,००० से कम होगी उनके बच्चों को प्रतिवर्ष रु. ३००० क्षात्रवृत्ति दी जायेगी क्यूंकि बारहवीं तक की शिक्षा देश के प्रत्येक बालक के लिए अनिवार्य और मुफ्त होगी।  
[५] नए निजी स्कूल खोलने की अनुमति नहीं दी जायेगी तथा वर्त्तमान के सभी निजी स्कूल्स में भी महँगी शिक्षा पर अंकुश लगाने के लिए आगामी जून २०१५ से पूर्व ही देश के शिक्षा विशेषज्ञ और स्कूल संचालकों की सयुंक्त समिति द्वारा वार्षिक शैक्षणिक शुल्क निश्चित किया जायेगा।  
[६] निजी स्कूलों में शैक्षणिक शुल्क में तभी वृद्धि की जायेगी जब स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के ७५% अथवा अधिक पालक सहमत हो।  
[७] प्रत्येक शाला में दीर्घ अवकाश के दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर सहभागी खिलाडी / खिलाडियों के मार्ग दर्शन में किसी भी खेल विशेष के लिए प्रशिक्षण शिवरों का आयोजन किया जायेगा। ऐसे सभी शिवरों के समयकाल और शुल्क का निर्धारण पालकों की सहमति से किया जायेगा।  
[८] प्रोढ़ शिक्षा जैसे अप्रभावी और दोपहर के मुफ्त भोजन जैसी विवादस्पद योजनाओं को बंद कर दिया जायेगा और इन योजनाओं पर होने वाली राशि का उपयोग नए स्कूल्स खोलने और वर्त्तमान स्कूल्स में सुविधाओं और स्तर बढ़ाने पर खर्च किया जायेगा।  
[९] उच्च शिक्षा प्राप्ति अथवा बारहवीं के बाद अपना व्यवसाय आरंभ करने के लिए शुरआती पूंजी की उपलब्धता के लिए सरकारी स्कूल्स में पड़नेवाले पत्येक विधार्थी का रु. १ लाख का मुफ्त बिमा किया जायेगा। 
करों का सरलीकरण 
देश के करदाता, व्यापारी और सामान्य नागरिक भी करों की विवधता और जटिलता से परेशानी अनुभव करते हैं तथा करों की अधिकता के कारण भी महंगाई में वृद्धि होती है, परन्तु कर सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व का एक मुख्य भाग भी है।  इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए हमारा दल सत्ता में आते ही करों के सरलीकरण के लिए औद्योगिक क्षेत्र के प्रितिनिधि, व्यापर संस्थाओं के प्रतिनिधि और आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों की समिति स्थापित की जायेगी जो एक वर्ष के अंदर अपने सुझाव सरकार को देगी।  देश के सामान्य नागरिक और  व्यापारी वर्ग की प्रितिक्रया और संसद में विचार विमर्श के बाद करों के नए ढांचे को कार्यविन्त किया जायेगा।  इस सम्पूर्ण क्रिया में २-३ वर्ष लगना सम्भव है इसी बात को ध्यान में रखते हुए आर्थिक वर्ष १-४-२०१५ से ३१-३-२०१६ से नयी कर प्रणाली के प्रभावी होने तक 
[१] रु. १ करोड़ वार्षिक विक्री करनेवाले खुरदरा [Retail ] विक्रेताओं के पास वर्त्तमान दरों पर कर भुगतान के अतरिक्त अपनी विक्री राशि पर २% के कर [आय कर, वैट, व्यवसाय कर  और सेवा कर के स्थान पर ] के भुगतान का पर्याय उपलब्ध होगा परन्तु इस पर्याय चुनने की घोषणा ३१-१२-२०१४ से पूर्व करना अनिवार्य होगा।  
[२] देश में बाल मजदूरी रोकने तथा निजी क्षेत्र में कामगारों के हो रहे आर्थिक शोषण को रोकने के लिए देश के सभी बालिगों नागरिकों के लिए ३१-१२-२०१४ से पूर्व आय कर स्थायी संख्या [PAN] परिचय पत्र बनवाना अनिवार्य होगा।  ३१-३-२०१५ को समाप्त होनेवाले वार्षिक वर्ष से प्रत्येक आयकर दाता को अपने आयकर विवरण पत्र उसके द्वारा किसी को भी दिए वेतन विवरण के साथ वेतनधारी का PAN देना अनिवार्य होगा।  
[३] काले धन पर अंकुश लगाने के लिए आगामी आर्थिक वर्ष से रु. पाँच हज़ार से अधिक के नगद भुगतान पर प्रतिबंध होगा। सभी विक्रेताओं और सेवा देनेवालों पर पांच हज़ार से अधिक के मूल्य की वस्तु खरीदनेवाले / सेवा प्राप्त करनेवाले का PAN देना अनिवार्य होगा। 
[४] नौकरी करनेवालों की आय उन्हें प्राप्त सकल राशि और सुविधायों के मूल्य पर आधारित होगी परन्तु नए कर ढांचे के प्रभावी होने तक उन्हें प्रचलित आय कर की दरों की तुलना में आधी दरों पर कर भरना होगा।  
[५] यह अनुभव हो रहा है कि जीवन आवश्यक वस्तुओं की महंगाई में उत्पादनकर्ता द्वारा किये गए विज्ञापनों पर खर्च की गयी राशि एक महत्वपूर्ण घटक है अतः १-४-२०१५ से आरंभ होनेवाले आर्थिक वर्ष से इन उत्पादनकर्ताओं को अपने उत्पादनों के सकल विक्री मूल्य के १% से अधिक राशि विज्ञापनों पर खर्च करने की अनुमति नहीं होगी।  इस श्रेणी में सम्मिलित सभी उत्पादनों की सूचि ३१-१२-२०१४ तक प्रकाशित कर दी जायेगी।  
[६] व्यापारिक संस्थानों के प्रशासकीय खर्चों पर नियंत्रण रखने के लिए १-४-२०१५ से आरंभ होनेवाले आर्थिक वर्ष से किसी भी व्यापारिक संसथान को उस आर्थिक वर्ष में दर्शाये गए अपने शुद्ध लाभ के ६०% तक की राशि को प्रशासकीय खर्च के रूप में मान्यता दी जायेगी तथा इस मद में खर्च की गयी अधिक राशि को संसथान के शुद्ध लाभ में जोड़कर आयकर की गणना की जायेगी।  
[७] किसी भी व्यापरिक संस्थान द्वारा मालिक अथवा नोकरी करनेवालों में से प्रत्येक के रु. पांच लाख के स्वास्थ बीमा के लिए दिए गए प्रीमियम राशि को देय आयकर में १००% की छूट होगी।  इसी प्रकार यदि कोई संसथान अपने किसी कर्मचारी को पुत्री के जन्म पर उस कन्या के लिए एक बार भुगतान की जानेवाली दीर्घ कालीन बीमा पालिसी उपहार स्वरुप देता है तो यह राशि भी आयकर में १००% की छूट के लिए मान्य होगी।  

Tuesday, January 07, 2014

लोकसभा चुनाव २०१४ और मेरा घोषणापत्र

चुनाव भारतीय लोकन्त्रत का वह पंचवार्षिक उत्सव अवसर होता है जब देश के साधारण नागरिक मतदान द्वारा शासन में अपनी सहभागिता प्रदर्शित करते हैं।  पिछले ६०-६५ वर्षों से यह एक परम्परा सी बन गयी है कि देश के नागरिक चुनावों में अपना प्रितिनिधि निर्वाचित करके निश्चिन्त हो जाते थे परन्तु गत एक दो दशकों से जिस अबाध गति से राजनीती के व्यसायीकरण ने प्रगति की उसने यह सुनिश्चित कर  दिया है कि केवल मतदान से ही साधारण नागरिक की लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के प्रीति कर्तव्यपूर्ति नहीं हो जाती है।  इसके साथ ही बढ़ती महंगाई, भृष्ट्राचार, बेरोजगारी और सबसे अधिक निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के अनैतिक आचरण ने यह रेखाकित करना आरंभ कर दिया है कि देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली साधारण नागरिकों से मतदान से आगे बढ़कर और अधिक सहभागिता की मांग करती है। 
लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में परंपरागत रूप से अब तक होता यह आया है कि चुनावों से पूर्व राजनैतिक दल आनेवाले पांच वर्षों के लिए अपने अपने दृष्टिकोण से देश के विकास की योजना को अपने अपने चुनाव घोषणा पत्र के रूप में प्रस्तुत करते रहे है। पिछले कई चुनावों से ऐसा अनुभव होता रहा है कि चाहे वह राज्य स्तर पर हो राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीतने के बाद राजनैतिक दलों के लिए चुनाव घोषणा पत्रों की बातों का कोई विशेष महत्व नहीं रहता है।  एक ज्वलंत उदहारण है देश पर सबसे अधिक समय तक शासन करनेवाली पार्टी कांग्रेस ने देश में बढ़ती महंगाई को १०० दिनों में कम करने की बात अपने घोषणा पत्र में कही थी परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि UPA के शासन काल में देश की विकास दर तो घटकर आधी हो गयी है परन्तु साथ ही महंगाई लगभग दोगुनी बढ़ गयी है।  
देश के साधारण नागरिकों के कई वर्ग समूह ऐसे हैं जिनकी याद राजनैतिक दलों को केवल चुनाव के समय ही आती है और परिणाम स्वरुप मुफ्त पानी , मुफ्त लैपटॉप , किसानो के लिए कर्ज़ माफ़ी, बिजली बिल आधा कर देना तथा कम कीमत पर अनाज का वितरण करने जैसी बातें चुनाव घोषणा पत्रों में महत्व प्राप्त करने लगी हैं ।  हमारे राजनैतिक दल शायद यह भूल जाते है कि इस प्रकार की घोषणाये मतदाता के लिए एक प्रकार का प्रलोभन ही है और निष्पक्ष् चुनाव का एक अर्थ प्रलोभनरहित चुनाव भी होता है।  
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अब वह समय आ गया है कि या तो देश के सभी राजनैतिक दल नागरिकों की आशाओं आकांशाओं को अपने चुनाव घोषणा पत्र में सम्म्लित करने की विधा सीख लें या फिर साधारण नागरिक, लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में अपनी सहभागिता के रूप में मतदान के साथ साथ राजनैतिक दलों के लिए घोषणा पत्र तैयार करने को भी अपना कर्त्वय मान ले। 
इन्ही सभी बातों को ध्यान में रखते हुए में अपनी बुद्धि अनुसार तैयार किये गए एक घोषणापत्र को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ इस आशा के साथ कि देश के सुजान और सजग नागरिक इसमें संशोधन करेगें।  
निर्वाचित जनप्रतिनिधि 
१] जैसे हमारे किसी भी विधायक / सासंद की आयु ७५ वर्ष होगी वह सदन की सदस्यता से त्यागपत्र दे देगा। 
२] विधायक / सासंद के स्वयं के अथवा उसके पारिवारिक सदस्य के सहभाग वाले किसी भी व्यापारिक संस्थान को किसी भी प्रकार के सरकारी कार्य की निविदा भरने अथवा ठेका आदि लेने [प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में ] पर प्रतिबंध होगा। 
३] चुनाव जीतने के तीन माह के अंदर निर्वाचित विधायक / सासंद अपने क्षेत्र की ग्राम पंचायतों से विचार विमर्श करके आनेवाले पांच वर्षों में विधायक / सासंद निधि द्वारा क्षेत्र में किये जानेवाले विकास कार्यों का वार्षिक नियोजन घोषित कर देगा।  यदि कोई विधायक / सासंद किसी वर्ष में घोषित कार्यों में से ८०% से कम कार्य करता है तो दल उस विधायक / सासंद की सदस्यता निरस्त कर देगा।  
४] विधायकों / सांसदों के साथ साथ मंत्रियों को राजधानी में निवास के लिए दिए जानेवाले रहवासी स्थान के लिए आगामी तीन वर्षों में बहुमंज़िला भवनों का निर्माण किया जायेगा और पद के अनुसार प्रत्येक विधायक / सासंद को कम / अधिक क्षेत्रफल वाला निवास स्थान आवंटित किया जायेगा।  वर्त्तमान के बड़े बड़े सरकारी भवन जो अब तक विधायक / सासंद / मंत्री के निवास के रूप में उपयोग में लाये जाते रहें है उनका उपयोग खेल के मैदान, स्कूल अथवा हॉस्पिटल के रूप में किया जायेगा। 
५] किसी भी विधायक / सांसद को सुरक्षा रक्षक की सरकारी सेवा केवल तभी प्राप्त हो पायेगी जब वह स्वयं अथवा उसका दल इसका भुगतान करने को तैयार हो।  केवल मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री इसके अपवाद होंगे परन्तु उन्हें भी राजधानी अथवा अपने गृहनगर में न्यूनतम आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जायेगी।  
६] हमारा कोई भी विधायक / सासंद किसी भी NGO से किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सम्बंधित नहीं होगा।  साथ ही हमारा प्रयत्न होगा की हम ऐसा नियम बना सकें जिससे देश के सभी NGO को उससे संबधित व्यक्ति के विधायक / सासंद के रूप में निर्वाचित होते ही सदस्यता और पद यदि कोई हो तो से अनिवार्य रूप से हटाने का अधिकार मिल जाये। 
७] यदि किसी विधायक / सासंद के कार्यों से क्षेत्र के नागरिक असंतुष्ट हैं तथा उस क्षेत्र की दो तिहाई ग्राम पंचायतें ग्राम सभा [सभी ग्राम सभाओं में एक माह से अधिक का अंतर  नहीं होना चाहिए ] बुलाकर विधायक / सासंद के विरोध में  अविश्वास प्रस्ताव पास कर देती है तो दल उस विधायक / सासंद को इस्तीफा देने के लिए विवश कर देगा।  अपवाद केवल तभी सम्भव है जब अगले चुनाव में एक वर्ष अथवा उससे कम समय शेष रहता हो।  
राजनैतिक दल और चुनाव खर्च 
१] देश के सभी राजनैतिक दलों पर किसी भी प्रकार की राशि नगद में लेने पर प्रतिबंध होगा। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि देश का वह ग्रामीण भाग जो अब तक बैंक सेवा से नहीं जुड़ पाया है वहाँ पर यह सेवा अथवा सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। 
२] देश के सभी राजनैतिक दलों को अपने सदस्य बनाने का अधिकार होगा परन्तु कोई भी मतदाता दो से अधिक राजनैतिक दलों का सदस्य नहीं बन सकता है , इसी प्रकार नाबालिगों , विधार्थियों , सेवा निवृत  तथा सक्रिय अर्थोपाजन न करनेवाले नागरिकों के राजनैतिक दलों के सदस्य बनने पर प्रतिबंध होगा।  
३] राजनैतिक दल अपने प्रत्येक सदस्य से वार्षिक सदस्यता शुल्क के रूप में अधिकतम रु. १००० तथा पांच वर्ष में एकबार चुनाव निधि के रूप में अधिकतम रु. २००० स्वीकार कर सकते है।  इस राशि और वर्ष भर में किये गए खर्च का विवरण आयकर विभाग तथा निर्वाचन आयोग को देने के साथ साथ सार्वजानिक करना भी अनिवार्य होगा।  
४] चुनाव वर्ष में देश के राजनैतिक दल किसी भी आयकर दाता नागरिक, जिसने पिछले आर्थिक वर्ष में दस हज़ार रूपये या उससे अधिक राशि का भुगतान आय कर के रूप में किया हो , से अधिकतम रु. ३००० चुनाव निधि के रूप में स्वीकार कर सकते है।  इस प्रकार की निधि देनेवाले आयकर दाता के लिए अपने उस वर्ष के आयकर विवरणपत्र में इस राशि और राजनैतिक दल का स्पष्ट उल्लेख करना अनिवार्य होगा।  
५] जमानत राशि भरने के अतरिक्त दल के प्रत्येक प्रत्याशी पर चुनाव से संबधित अन्य किसी भी प्रकार का खर्च करने पर प्रतिबंध होगा। चुनाव पर होनेवाला खर्च दल द्वारा किया जायेगा।  चुनाव खर्च पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा परन्तु कोई भी राजनैतिक दल उस आम चुनाव से पूर्व समाप्त हुए आर्थिक वर्ष समाप्ति पर दल के पास उपलब्ध राशि के ९०% से अधिक खर्च नहीं कर सकता है। 
लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनः निर्धारण 
हमारा दल चुनाव जीतने के बाद निम्नलिखित सुधार करेगा। 
१] आगामी वर्ष अर्थात २०१५ को विशेष जनगणना वर्ष का रूप दिया जायेगा और इसी जनगणना के आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनः निर्धारण किया जायेगा।  वर्ष २०१७ से होनेवाले सभी चुनाव तदनुसार होंगें। 
२] वर्ष २०१७ से प्रत्येक विधानसभा /लोकसभा क्षेत्र से दो प्रितिनिधि एक महिला और एक पुरुष चुनने का प्रावधान किया जायेगा जिससे महिलाओं को समुचित प्रतिनिधत्व प्राप्त हो सके। 
३] विधानसभा / लोकसभा क्षत्रों का निर्धारण इस प्रकार किया जायेगा कि प्रत्येक विधानसभा में कम से कम २.५ लाख और अधिकतम ३ लाख मतदाताओं तथा लोकसभा में ७ से ८ लाख मतदाताओं का समावेश होगा।  
४] यह नियम बनाया जायेगा कि कोई भी व्यक्ति अधिकतम पांच बार चुनाव लड़ सके।  
                            .......  क्रमशः  .......... 



Wednesday, January 01, 2014

आप की विजय के दस कारण

निश्चय ही दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों ने यह सुपरिभाषित कर दिया है कि कम से कम देश का शहरी विशेषकर महानगरीय लोकतंत्र एक नयी करवट ले रहा है।  वैसे यह भी एक कटु सत्य है कि जो सफलता आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा में मिली है वैसी सफलता तो क्या इस सफलता का  ५०% सफलता उसकेलिए किसी भी अन्य महानगर चाहे वो मुम्बई कलकता हो या चेन्नई अथवा बैंगलोर में प्राप्त करना टेडी खीर सिद्ध होता।  हम अब ये अवश्य कह सकते है कि दिल्ली की इस सफलता के बाद देश का कम से कम शहरी मतदाता, विशेषकर युवा मतदाता जो सदैव परिवर्तन का स्वागत करने को तत्पर रहता है , आम आदमी पार्टी के बारे में कुछ हद तक गम्भीरता से सोचने लगा है।
ध्यान देने की बात ये भी है कि आम आदमी पार्टी की सफलता में दिल्ली के देश की राजधानी होने और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का केंद्र होने ने भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।  आम आदमी पार्टी का जन्म भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन और सरकार के विरोध में आम आदमी के उदय के गर्भ से हुआ है और दिल्ली के देश की राजधानी होने ने आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद की है।  यदि हम ध्यान दें तो पाते है श्री कलमाड़ी जी जिन्हे CWG घोटाले के केंद्र के रूप में माना जाता रहा है उनका जितना विरोध दिल्ली में हुआ उसका १०% भी  उनके गृहनगर पुणे नहीं हुआ।  यहाँ पर ध्यान देने की बात ये भी है कि पुणे महाराष्ट्र राज्य का कोई छोटा मोटा नगर नहीं है, राज्य की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ साथ पुणे शिक्षा के केंद्र और कंप्यूटर हब के रूप में भी प्रसिद्ध है अर्थात पुणे में सुशिक्षित युवा नागरिकों की संख्या काफी अधिक है।
पिछले २-३ वर्षों से देश भर उजागर होते आर्थिक घोटालों, बढ़ती महंगाई और केंद्र में शासन कर रहे दल कांग्रेस की उदासीनिता से सम्पूर्ण देश में नागरिक असंतोष में चरणबद्ध रूप में वृद्धि हुई है परन्तु जितने आंदोलन और विरोध दिल्ली में हुए है उतने देश के किसी अन्य भाग में नहीं हुए हैं, यहाँ तक कि श्री अन्ना  हज़ारे के देशव्यापी भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन की कर्मभूमि दिल्ली ही थी।  दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार कांड जैसी घटनाओं ने इस असंतोष अग्नि में घी का काम किया।  श्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अधिकांश नेता दिल्ली में हुए इन आन्दोलनों से न केवल जुड़े हुए थे परन्तु प्रायः हर बार आंदोलन के अगरणीय की भूमिका में भी थे , इसीलिए स्वभाविक रूप में जब इन्होने आम आदमी पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उन्हें विशाल जनसमर्थन मिलता चला गया।
०१] दिल्ली में पिछले १५ वर्षों से निरंतर चल रहे शीला दीक्षित जी के शासन के कारण शासन विरोधी भावना अपने चरम पर थी।  चुनाव पूर्व से बढ़ती महंगाई और बलात्कार की घटनाओं ने इस शासन विरोधी भावना को हवा दी।
०२] राष्ट्रीय राजधानी होने तथा केंद्र और दिल्ली दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार होने के कारण राष्ट्रिय स्तर पर हुए निर्णयों प्रभाव भी दिल्ली के नागरिकों का कांग्रेस के प्रति क्रोध का कारण बना।
०३] मुख्य विपक्षी दल बीजेपी चुनाव के लगभग एक माह पूर्व तक भी अपनी दिल्ली प्रदेश इकाई की आंतरिक कलह को सतह पर आने से रोकने में व्यस्त था।
०४] बीजेपी ने अपने प्रस्तावित मुख्यमंत्री के रूप में डा: हर्षवर्धन की घोषणा करने में देर कर दी जिसके कारण बीजेपी को कुछ स्थान काफी कम वोट अंतर से हारने पढ़े।
०५] बीजेपी यह भी नहीं समझ पायी कि वर्त्तमान में मतदाताओं का एक बड़ा प्रभावी वर्ग १८ से ३५ वर्ष के आयु वर्ग से आता है और यह वर्ग अधिक आयु वालों को अपने निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखना चाहता है।
०६] देश का सुशिक्षित युवा वर्ग खतरा उठाकर भी परिवर्तन चाहता है, सम्भवतः यह एक मुख्य कारण था जिसके कारण दिल्ली में आम आदमी पार्टी २८% से भी अधिक मतदाताओं की पसंद बन गयी।
०७] मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए पानी जैसी आवश्यकता अथवा किसी छोटे मोटे काम के लिए सरकारी कार्यालय में समय गंवाने का अर्थ होता है अपने उस दिन के कमाई के समय में कटौती करना इसी कारण जब आम आदमी पार्टी ने मुफ्त पानी, बिजली बिल आधा कर देने अथवा मोहल्ला सभा जैसी लोकलुभावन घोषणाओं को घर घर पहुँचाना आरंभ किया तो नागरिक आकर्षित होते चले गए।
०८] यदि ध्यान दिया जाये तो बीजेपी द्वारा श्री मोदी जी की प्रधानमंत्री पद के लिए घोषणा के बाद से कांग्रेस बचावात्मक रूप में आ गयी और अनुभव कर रही है की २०१४ के लोकसभा चुनावों में उसकी पराजय लगभग तय हो चुकी है इसीलिए कांग्रेस हरसंभव प्रयत्न कर रही है कि २०१४ के चुनाव के बाद केंद्र में एक कमजोर सरकार बने।  अपने इस अभियान में कांग्रेस ने अनुभव किया कि अनुभवहीन और अतिउत्साही आम आदमी पार्टी एक ऐसा राजनैतिक दल है जिसके कंधे पर बन्दूक रखकर, बीजेपी के केंद्र में शक्तिशाली सरकार बनाने के इरादे को निशाना बनाया जा सकता है।
०९] दिल्ली में पिछले तीन वर्षों से निरंतर चल रहे जन आन्दोलनों के कारण श्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं की लोकप्रियता के नए शिखर छू रही थी।
१०] अपनी विशिष्ट सरकारी विरोधी भाषा शैली के कारण आम आदमी पार्टी के नेता नागरिक असंतोष को उभरने और अपने पक्ष में मतदान करवाने में बीजेपी की अपेक्षा अधिक सफल हुए।