चुनाव भारतीय लोकन्त्रत का वह पंचवार्षिक उत्सव अवसर होता है जब देश के साधारण नागरिक मतदान द्वारा शासन में अपनी सहभागिता प्रदर्शित करते हैं। पिछले ६०-६५ वर्षों से यह एक परम्परा सी बन गयी है कि देश के नागरिक चुनावों में अपना प्रितिनिधि निर्वाचित करके निश्चिन्त हो जाते थे परन्तु गत एक दो दशकों से जिस अबाध गति से राजनीती के व्यसायीकरण ने प्रगति की उसने यह सुनिश्चित कर दिया है कि केवल मतदान से ही साधारण नागरिक की लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के प्रीति कर्तव्यपूर्ति नहीं हो जाती है। इसके साथ ही बढ़ती महंगाई, भृष्ट्राचार, बेरोजगारी और सबसे अधिक निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के अनैतिक आचरण ने यह रेखाकित करना आरंभ कर दिया है कि देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली साधारण नागरिकों से मतदान से आगे बढ़कर और अधिक सहभागिता की मांग करती है।
लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में परंपरागत रूप से अब तक होता यह आया है कि चुनावों से पूर्व राजनैतिक दल आनेवाले पांच वर्षों के लिए अपने अपने दृष्टिकोण से देश के विकास की योजना को अपने अपने चुनाव घोषणा पत्र के रूप में प्रस्तुत करते रहे है। पिछले कई चुनावों से ऐसा अनुभव होता रहा है कि चाहे वह राज्य स्तर पर हो राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीतने के बाद राजनैतिक दलों के लिए चुनाव घोषणा पत्रों की बातों का कोई विशेष महत्व नहीं रहता है। एक ज्वलंत उदहारण है देश पर सबसे अधिक समय तक शासन करनेवाली पार्टी कांग्रेस ने देश में बढ़ती महंगाई को १०० दिनों में कम करने की बात अपने घोषणा पत्र में कही थी परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि UPA के शासन काल में देश की विकास दर तो घटकर आधी हो गयी है परन्तु साथ ही महंगाई लगभग दोगुनी बढ़ गयी है।
देश के साधारण नागरिकों के कई वर्ग समूह ऐसे हैं जिनकी याद राजनैतिक दलों को केवल चुनाव के समय ही आती है और परिणाम स्वरुप मुफ्त पानी , मुफ्त लैपटॉप , किसानो के लिए कर्ज़ माफ़ी, बिजली बिल आधा कर देना तथा कम कीमत पर अनाज का वितरण करने जैसी बातें चुनाव घोषणा पत्रों में महत्व प्राप्त करने लगी हैं । हमारे राजनैतिक दल शायद यह भूल जाते है कि इस प्रकार की घोषणाये मतदाता के लिए एक प्रकार का प्रलोभन ही है और निष्पक्ष् चुनाव का एक अर्थ प्रलोभनरहित चुनाव भी होता है।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अब वह समय आ गया है कि या तो देश के सभी राजनैतिक दल नागरिकों की आशाओं आकांशाओं को अपने चुनाव घोषणा पत्र में सम्म्लित करने की विधा सीख लें या फिर साधारण नागरिक, लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में अपनी सहभागिता के रूप में मतदान के साथ साथ राजनैतिक दलों के लिए घोषणा पत्र तैयार करने को भी अपना कर्त्वय मान ले।
इन्ही सभी बातों को ध्यान में रखते हुए में अपनी बुद्धि अनुसार तैयार किये गए एक घोषणापत्र को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ इस आशा के साथ कि देश के सुजान और सजग नागरिक इसमें संशोधन करेगें।
निर्वाचित जनप्रतिनिधि
१] जैसे हमारे किसी भी विधायक / सासंद की आयु ७५ वर्ष होगी वह सदन की सदस्यता से त्यागपत्र दे देगा।
२] विधायक / सासंद के स्वयं के अथवा उसके पारिवारिक सदस्य के सहभाग वाले किसी भी व्यापारिक संस्थान को किसी भी प्रकार के सरकारी कार्य की निविदा भरने अथवा ठेका आदि लेने [प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में ] पर प्रतिबंध होगा।
३] चुनाव जीतने के तीन माह के अंदर निर्वाचित विधायक / सासंद अपने क्षेत्र की ग्राम पंचायतों से विचार विमर्श करके आनेवाले पांच वर्षों में विधायक / सासंद निधि द्वारा क्षेत्र में किये जानेवाले विकास कार्यों का वार्षिक नियोजन घोषित कर देगा। यदि कोई विधायक / सासंद किसी वर्ष में घोषित कार्यों में से ८०% से कम कार्य करता है तो दल उस विधायक / सासंद की सदस्यता निरस्त कर देगा।
४] विधायकों / सांसदों के साथ साथ मंत्रियों को राजधानी में निवास के लिए दिए जानेवाले रहवासी स्थान के लिए आगामी तीन वर्षों में बहुमंज़िला भवनों का निर्माण किया जायेगा और पद के अनुसार प्रत्येक विधायक / सासंद को कम / अधिक क्षेत्रफल वाला निवास स्थान आवंटित किया जायेगा। वर्त्तमान के बड़े बड़े सरकारी भवन जो अब तक विधायक / सासंद / मंत्री के निवास के रूप में उपयोग में लाये जाते रहें है उनका उपयोग खेल के मैदान, स्कूल अथवा हॉस्पिटल के रूप में किया जायेगा।
५] किसी भी विधायक / सांसद को सुरक्षा रक्षक की सरकारी सेवा केवल तभी प्राप्त हो पायेगी जब वह स्वयं अथवा उसका दल इसका भुगतान करने को तैयार हो। केवल मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री इसके अपवाद होंगे परन्तु उन्हें भी राजधानी अथवा अपने गृहनगर में न्यूनतम आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जायेगी।
६] हमारा कोई भी विधायक / सासंद किसी भी NGO से किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सम्बंधित नहीं होगा। साथ ही हमारा प्रयत्न होगा की हम ऐसा नियम बना सकें जिससे देश के सभी NGO को उससे संबधित व्यक्ति के विधायक / सासंद के रूप में निर्वाचित होते ही सदस्यता और पद यदि कोई हो तो से अनिवार्य रूप से हटाने का अधिकार मिल जाये।
७] यदि किसी विधायक / सासंद के कार्यों से क्षेत्र के नागरिक असंतुष्ट हैं तथा उस क्षेत्र की दो तिहाई ग्राम पंचायतें ग्राम सभा [सभी ग्राम सभाओं में एक माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए ] बुलाकर विधायक / सासंद के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव पास कर देती है तो दल उस विधायक / सासंद को इस्तीफा देने के लिए विवश कर देगा। अपवाद केवल तभी सम्भव है जब अगले चुनाव में एक वर्ष अथवा उससे कम समय शेष रहता हो।
राजनैतिक दल और चुनाव खर्च
१] देश के सभी राजनैतिक दलों पर किसी भी प्रकार की राशि नगद में लेने पर प्रतिबंध होगा। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि देश का वह ग्रामीण भाग जो अब तक बैंक सेवा से नहीं जुड़ पाया है वहाँ पर यह सेवा अथवा सुविधा उपलब्ध हो जायेगी।
२] देश के सभी राजनैतिक दलों को अपने सदस्य बनाने का अधिकार होगा परन्तु कोई भी मतदाता दो से अधिक राजनैतिक दलों का सदस्य नहीं बन सकता है , इसी प्रकार नाबालिगों , विधार्थियों , सेवा निवृत तथा सक्रिय अर्थोपाजन न करनेवाले नागरिकों के राजनैतिक दलों के सदस्य बनने पर प्रतिबंध होगा।
३] राजनैतिक दल अपने प्रत्येक सदस्य से वार्षिक सदस्यता शुल्क के रूप में अधिकतम रु. १००० तथा पांच वर्ष में एकबार चुनाव निधि के रूप में अधिकतम रु. २००० स्वीकार कर सकते है। इस राशि और वर्ष भर में किये गए खर्च का विवरण आयकर विभाग तथा निर्वाचन आयोग को देने के साथ साथ सार्वजानिक करना भी अनिवार्य होगा।
४] चुनाव वर्ष में देश के राजनैतिक दल किसी भी आयकर दाता नागरिक, जिसने पिछले आर्थिक वर्ष में दस हज़ार रूपये या उससे अधिक राशि का भुगतान आय कर के रूप में किया हो , से अधिकतम रु. ३००० चुनाव निधि के रूप में स्वीकार कर सकते है। इस प्रकार की निधि देनेवाले आयकर दाता के लिए अपने उस वर्ष के आयकर विवरणपत्र में इस राशि और राजनैतिक दल का स्पष्ट उल्लेख करना अनिवार्य होगा।
५] जमानत राशि भरने के अतरिक्त दल के प्रत्येक प्रत्याशी पर चुनाव से संबधित अन्य किसी भी प्रकार का खर्च करने पर प्रतिबंध होगा। चुनाव पर होनेवाला खर्च दल द्वारा किया जायेगा। चुनाव खर्च पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा परन्तु कोई भी राजनैतिक दल उस आम चुनाव से पूर्व समाप्त हुए आर्थिक वर्ष समाप्ति पर दल के पास उपलब्ध राशि के ९०% से अधिक खर्च नहीं कर सकता है।
लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनः निर्धारण
हमारा दल चुनाव जीतने के बाद निम्नलिखित सुधार करेगा।
१] आगामी वर्ष अर्थात २०१५ को विशेष जनगणना वर्ष का रूप दिया जायेगा और इसी जनगणना के आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनः निर्धारण किया जायेगा। वर्ष २०१७ से होनेवाले सभी चुनाव तदनुसार होंगें।
२] वर्ष २०१७ से प्रत्येक विधानसभा /लोकसभा क्षेत्र से दो प्रितिनिधि एक महिला और एक पुरुष चुनने का प्रावधान किया जायेगा जिससे महिलाओं को समुचित प्रतिनिधत्व प्राप्त हो सके।
३] विधानसभा / लोकसभा क्षत्रों का निर्धारण इस प्रकार किया जायेगा कि प्रत्येक विधानसभा में कम से कम २.५ लाख और अधिकतम ३ लाख मतदाताओं तथा लोकसभा में ७ से ८ लाख मतदाताओं का समावेश होगा।
४] यह नियम बनाया जायेगा कि कोई भी व्यक्ति अधिकतम पांच बार चुनाव लड़ सके।
....... क्रमशः ..........
No comments:
Post a Comment