किसीभी लोकतान्त्रिक विवस्था का चुनाव अनिवार्य अंग है परन्तु जिस प्रकार से हमारे देश में चुनावों के दौरान पैसों का महत्त्व और उपयोग बढता जा रहा है उसे देखेते हुए निश्चय ही ये कहा जा सकता है कि यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो निश्चय ही भविष्य में यह प्रवृति एक लाइलाज रोग का रूप ले लेगी और वैचारिक रूप से योग्य पिरत्याक्षी के लिए चुनाव लड़ना असंभव बन जायेगा | अभी जिन पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां से समाचार मिल रहे हैं कि पिछले ११ दिनों में में अकेले उतरप्रदेश में ही ३० करोड़ से भी अधिक बेहिसाबी पैसा जो चुनाव खर्च के लिए ले जाया जा रहा था पुलिस द्वारा जब्त किया गया है | वास्तव में देखा जाये तो हमारे देश में चुनाव काले धन की गंगोत्री बनते जा रहे हैं जिस प्रकार हमारे समाज ने ये स्वीकार कर लिया है कि लाखों रुपये खर्च करने के बाद बनानेवाले डॉक्टर को ये हक़ है कि वो कुछ सौ रुपये फीस ले उसी प्रकार करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव जीतनेवाले राजनेता के भृष्ट आचरण को भी नज़र अंदाज़ करने की घटक प्रवर्ती बढती जा रही है |
लोकपाल पर लोकसभा और राज्य सभा में हुए वादविवाद ने पुरे देश को न केवल दिखाया परन्तु अच्छी तरह से समझा भी दिया कि वास्तव में ये लोक प्रितिनिधि अपने अपने राजनैतिक दलों के प्रधान के आदेश से बाहर नहीं जा सकते हैं कियुंकि दल के आदेश के विपरीत वोट करने का अर्थ अपनी सदस्यता खोना है | इसे हम दुसरे शब्दों में कहे तो हमारे चुने हुए जन प्रतिनिधि जन आकांशा के अनुसार नहीं परन्तु अपने राजनैतिक दल की विचार धारा के अनुसार कार्य करने को विवश है |
प्रगति का एक अर्थ ये भी है कि हम सैदेव अनुचित बात को उचित बात से बदलने के लिए तैयार रहें हैं और वर्तमान समय बड़े ही साफ साफ शब्दों और बुलंद आवाज़ में बता रहा है कि यही उचित समय है जब हमें न केवल अपने राजनैतिक प्रणाली में सुधार लेन चाहिए परन्तु साथ साथ चुनाव में पैसों के बढते महत्व को कम करने के लिए भी उचित कदम उठाने चाहिए | इस सम्बन्ध में मेरे कुछ सुझाव अलोकतांत्रिक लगने संभव है परन्तु यदि ध्यान पूर्वक देखा गया तो ये सुझाव हमारी लोकतान्त्रिक व्वयस्था को मजबूती प्रदान करने की दिशा में एक सार्थक पहल साबित हो सकते हैं | राजनैतिक सुधारों के सम्बन्ध में मेरे सुझाव हैं :-
१] किसी भी राज्य में राज्य की जनसख्या के आधार पर राज्य स्तिरीय राजनैतिक दलों की संख्या निश्चित कर देनी चाहिए, जो किसी भी अवस्था में एक चुनाव विशेष के लिए तीन अथवा पांच [राज्य की जनसख्या के आधार पर ] से अधिक नहीं होनी चाहिए | अर्थात किसी भी क्षेत्र में ३ अथवा ५ से अधिक उमीदवार नहीं होंगे जिसका अर्थ होगा चुनाव में उपयोग होनेवाले पैसे की बचत |
२] चुनाव लड़ने के लिए इछुक व्यक्ति का किसी न किसी राजनैतिक दल का सदस्य होना अनिवार्य कर देना चाहिए साथ ही ये भी बंधन होना चाहिए कि कोई भी दल उस व्यक्ति को चनाव टिकेट नहीं दे सकते हैं जो पिछले तीन वर्षों से कम समय से उस दल का सदस्य नहीं है इससे चुनाव के समय होनेवाले दलबदल को रोका जा सकता है |
३] चुनाव च्यूंकि दलगत आधार पर होंगे इसलिए कोई भी उमीदवार स्वतंत्र रूप से प्रचार नहीं करेगा जिसका अर्थ होगा चुनाव खर्च में बहुत बड़ी बचत |
४] उमीदवार को चुनाव के लिए पैसा खर्च करने की अनुमति नहीं होगी जो भी खर्च होगा वो उस उमीदवार के राजनैतिक दल द्वारा किया जायेगा | इस खर्च के लिए राजनैतिक दलों को अपना कोष तैयार करने की अनुमति होगी जिसके लिए वे व्यापारी वर्ग से चंदा ले सकतें हैं परन्तु यहाँ पर न्यूनतम ५००० रुपये और अधिकतम ५ लाख रुपये की सीमा होगी | राजनैतिक दलों के लिए यह भी अनिवार्य होगा कि वे इन चंदा देनेवालों के नाम और पैसे सार्वजनिक करें |
५] चुनाव जीतनेवाले दल के लिए ये अनिवार्य होगा कि सरकार बनाते समय विशेषज्ञों को मंत्री मंडल में स्थान दिया जाये उदहारण के रूप में वित्त मंत्री का अर्थ शास्त्री होना, स्वस्थ मंत्री का चिकित्सक होना, शिक्षा मंत्री का उच्च शिक्षित होना, खेल और युवा मामलों के मंत्री का ४० वर्ष से कम आयु का होना अनिवार्य होगा | ठीक इसी प्रकार राजनैतिक दलों को ये भी ध्यान देना होगा कि उनके चुने हुए सदस्यों में समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिध्तव मिले तथा जिन वर्गों को आरक्षण प्राप्त है उन वर्गों के सदस्य उसी अनुपात में हो | इस के लिए राजनैतिक दलों को अपने चुने हुए सदस्यों में से २०% तक को बदलने का अधिकार होगा परन्तु जिस नए सदस्य को चुने हुए सदस्य के स्थान पर मनोनीत किया जा रहा है उस व्यक्ति को उस क्षेत्र का कम से कम १० वर्षों से रहवासी होना और ३ वर्षों से अधिक के लिए दल का सदस्य होना अनिवार्य होगा |
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