संध्या समय को प्रायः समाप्ति का अर्थ के रूप में देखा जाता परन्तु क्या इसे ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि ये वो समय है जो एक नए सूर्योदय से पूर्व का काल है | वास्तव में जब हम ऐसा सोचेंगे तभी हम जीवन की सार्थकता को समझ पाएंगे और सही अर्थों में जीवन आनंद से परिचित होने के साथ साथ इस आनंद के उपभोग से वंचित होने से स्वयं को बचा पाएंगे | वर्तमान काल में ये प्रवर्ति बडती ही जा रही है कि एक निश्चित आयु अथवा सेवा निव्रती के बाद प्रायः हम ये समझने लगते हैं कि हम अपना जीवन जी चुके हैं और अब जो कुछ भी करना है बच्चों ने ही करना है | बस यही वो बुनियाद है जिस पर निर्माण होता है असंतोष और अकलेपन के विशाल महल जो अपनी विशालता से अभिभूत करने के स्थान पर हमें डराने के साथ साथ हम में विरकत्ता की भावना भी उपजता है यदि वास्तव में देखा जाये तो यही वह काल है जब कोई भी व्यक्ति अपने जीवन अनुभवों के आधार पर न केवल स्वयं सुखों की चरम सीमा पर होता है परन्तु साथ ही वह उस अवस्था में होता है कि न केवल अपने बच्चों का मार्गदर्शन कर सकें परन्तु साथ ही समय के साथ होनेवाले सामाजिक परिवर्तन को भी एक सार्थक दिशा प्रदान कर सके |
जीवन की संध्या जिसे कहा जाता है वास्तव में मानवीय जीवन का वह काल जब हम जीवन के भौतिक सुखों के आनंद की चरम सीमा पार कर चुके होते हैं या दुसरें शब्दों में कहा जाये तो इस आयु में भौतिक सुख अर्थहीन होने के साथ साथ प्रलोभन भी नहीं रहते हैं जिसके कारण हर व्यक्ति अपनी उर्जा को वास्तव में और सार्थक दिशा में उपयोग करने के लिए सर्वाधिक उचित अवस्था में होता है | जीवन का यह वो काल होता है जब हमें समय की कमी जैसा प्रश्न परेशान नहीं करता है कई लोगों के लिए तो इस अवस्था में समय गुजरना भी एक समस्या बन जाता है और वे ये समझ भी नहीं पाते है कि समय को कैसे व्यतिति करें ? कभी कभी तो ये समस्या इतना विकराल रूप ले लेती है कि हम जीवन आनंद का उपभोग करने के स्थान पर जीवन अंत की कामना करने लगते हैं |
यदि हम थोडा सा सतर्क रहें और अपने जीवन अनुभवों का लाभ उठाने के प्रीति थोडा सा सजग रहें तो अपने जीवन की संध्या को अपने जीवन के सर्वोतम काल में बदल सकते है | आवश्कता बस ये अनुभव करने की है कि हम जीवन के अंत कि ओर बढने के स्थान पर जीवन के पुनर्जन्म की दिशा में यात्रा कर रहें हैं | यहाँ पर कुछ सार्थक पहलें दी जा रही है जिनके उपयोग से हम अपने जीवन की संध्या को सार्थक बनाने के साथ स्वयं को भी इस अवस्था का पूरा पूरा आनंद लेने की अवथा में ला सकते हैं |
१] अनुभव कीजये कि आपकी शारीरिक शक्तियां कमजोर पड़ रही हैं ओर आप मानसिक रूप से अधिक शक्तिशाली तथा स्थिर रूप में विकसित हो चुकें है यह अहसास आपको अपनी दिनचर्या निश्चित करने में सफलता प्रदान करेगा |
२] स्वयं को किसी समाज उपयोगी मानसिक कार्य में व्यस्त रखें यदि आप में क्षमता है और आपके जीवन कार्य का क्षेत्र शिक्षा रहा है तो अपने परिसर के बच्चों का मार्गदर्शन और उनके स्कूल के ग्रह कार्य [ होम वर्क ] में मदद देना एक सार्थक कदम है जो न केवल आपकी समय गुजरने की समस्या हल कर देगा परन्तु साथ साथ ही आपके लिए अवसर होगा नयी पीडी के सोच को समझने और उनके जीवन दृष्टिकोण को जानने का |
३] अपने बच्चों पर आपके लिए समय निकालने के लिए दबाव मत बनाइये, याद कीजिये अपने कार्य दिनों में आप स्वयं कितने व्यस्त रहते थे | जहाँ तक संभव हो अपने बेटों बेटियों और बहुओं को उनके निर्णय स्वयं लेने दीजिये |
४] प्रायः यह होता है कि हम अपने कार्य दिनों में चाहकर भी अपने जीवन साथी के साथ पर्यटन पर नहीं जा पाते हैं अथवा किन्ही दूर के स्थानों कि यात्रा टाल देते हैं ये वो समय है जब आप इस कमी को पूरा कर सकते हैं | वर्ष में कम से कम दो बार तो अवश्य लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनायें | यदि संभव हो तो स्कूल की छुटियों का समय चुने और अपने नाती पोतों को साथ ले जाएँ आप पाएंगे कि यह समय आपके जीवन के सर्वोतम समय में सम्मिलित हो गया है |
५] समय के साथ जीवन पद्धति भी बदलती है प्रयत्नपूर्वक स्वयं में परिवर्तन लायें और खुद को आधुनिक जीवन शैली के अनुरूप ढाल लें |
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