निश्चय ही वाणी वो एक नियामत है जो मानव को अन्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बनाती है परन्तु प्रश्न ये है कि क्या हम इस बोल सकने के अपने गुण का पूरा पूरा और सर्वश्रेष्ठ उपयोग भी करते हैं अथवा नहीं ? ये वाणी ही है जो हमारे विचारों को दूसरों तक पहुचने में मदद करती है हमें इस काबिल बनाती है कि हम अपने सुख दुःख के बारे में दूसरों को बत्ता सकें | लोकंतंत्र में तो इस क़ाबलियत का महत्त्व और भी अधिक बाद जाता है कियुंकि नेताओं के बोले हुए शब्द ही उनकी जय पराजय निश्चित करते हैं |
लोकतंत्र हमें बोलने कि आज़ादी प्रदान करता है परन्तु इस आज़ादी के साथ साथ कुछ बंधन भी जुड़े रहते हैं, बोलने की आज़ादी का ये अर्थ कदापि नहीं है कि हम मन में जो भी विचार आये उसे बिना सोचे समझे बोल दें | हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और किसी एक के बोलने का परिणाम समाज के अन्य सदस्यों पर होता है , जिस प्रकार हमारे अपने भाव और सोच है उसी प्रकार हमारे बोलने से किसी और की भावनाओं और सोच पर किसी प्रकार का आघात नहीं होना चाहिए | वैसे भी कहा जाता है कि प्रत्येक मानव को दो कान और एक जीभ इसीलिए दिए गए ताकि वो जितना सुने उसके आधे से अधिक नहीं बोले | मनुष्य के बत्तीस दांतों का महत्त्व केवल मात्र खाने को चबाने तक सिमित नहीं है यह ये भी दर्शाता है कि मनुष्य को बोलने से पहले विचार करना चाहिए शायद इसीके प्रतीकात्मक रूप में जीभ को दातों की सीमा के भीतर रखा गया |
यह हमारी बोलने की शक्ति ही है जो हमें जीवन देने के साथ साथ हमारी मौत का कारन भी बन सकती है मुझे याद आ रही एक लघु कथा | पुराने समय में किसी पहाड़ी गाँव में अकाल पड़ गया लोग खाने की कमी के कारण मरने लगे | गाँव के एक बुद्धिमान युवक ने सोचा कि गाँव में भूखा मरने से तो अच्छा है कि वो पहाड़ी के पार वाला जंगल पार करके दुसरे नगर चला जाये संभवत ऐसा भी हो सकता है कि उसे कोई मददगार मिल जाये और वो अपने साथ साथ गाँव के अन्य लोगों का भी जीवन बचाने में सफल हो जाये |
गाँव से निकलने के बाद काफी देर चलने तक वो कुछ थकावट अनुभव करने लगा और एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए लेट गया | अचानक ही उसे एक मानवीय वाणी सुनाई दी जो उससे यात्रा का कारण पूछ रही थी | निर्जन स्थान पर मानवीय वाणी को सुनकर युवक कुछ घबरा सा गया परन्तु शीघ्र ही उसकी नज़र पेड़ कि ऊँची डाल पर लटके एक इंसानी कंकाल पर जा पड़ी जो उससे प्रश्न पूछ रहा था | युवक की बात सुनकर कंकाल ने कहा वो उसकी सहयता तो कर सकता है परन्तु यदि युवक ने अपनी बोलने की आज़ादी पर नियंत्रण नहीं रखा तो उसके बुरे परिणाम के लिए युवक स्वयं जवाबदार होगा | युवक के वचन देने पर कंकाल ने बाताया कि थोड़ी ही दुरी पर जंगली फलों का एक ऐसा बाग है जहाँ से युवक को इतने फल मिल सकते हैं कि वो काफी दिनों तक अपने गाँव वालों को भूख से बचा सकता है |
कंकाल की बताई दिशा में आगे बदने पर युवक को फलों से भरे पेड़ मिल गए | अब समस्या थी फलों को गाँव तक ले जाने की | उस बुद्धिमान युवक ने केवल दो दिन में पेड़ों की डालियों काटकर उन्हें इस प्रकार जोड़ दिया ताकि वो फलों को उनपर लड़कर गाँव ले जा सके | गाँव में फलों के पहुचने से गाँव के लोग भुखमरी से बच गए और उस युवक से फलों के बारे में पूछने लगे | ये वो समय था जब झूठ बोलने की सजा मौत होती थी | पहले तो युवक टालमटोल करने लगा परन्तु कुछ ही दिनों में उसने इंसानी कंकाल से हुई अपनी बातचीत के बारे में बता दिया | किसी भी गाँव वाले को युवक की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था, आखिर विवश होकर युवक गाँव वालों को लेकर कंकाल लटके पेड़ के पास पहुंचा और कंकाल से अपने पक्ष में गवाही देने के लिए कहने लगा | कंकाल से कोई भी उत्तर नहीं मिलने पर गांववालों को लगा कि निश्चय ही युवक झूठ बोल रहा है और प्रथा अनुसार उन्होंने युवक को फांसी लगाकर पेड़ पर कंकाल के बाजु में लटका दिया |
जब गांववाले काफी दूर निकल गए और दम घुटने के कारण युवक मर गया तो कंकाल ने कहा देखो मैंने तुम्हे पहले से ही चेताया था कि यदि तुम अपनी बोलने कि आज़ादी पर नियंत्रण नहीं रखोगे तो उसके बुरे परिणाम भी हो सकते हैं |
1 comment:
very nice
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