देश के पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम आने में अब तीन हफ़्तों से भी कम समय बचा है और जिस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि विशेषकर उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में शायद ही किसी एक राजनैतिक दल को बहुमत मिल पाए | उत्तरप्रदेश ही क्यूँ पिछले कुछ सालों से कई राज्यों और यहाँ तक कि केंद्र में भी एक से अधिक दलों की साझा सरकार कार्यरत है , वास्तव में देखा जाये तो देश राजनैतिक विश्वास और स्थिरता के अभाव के दौर से गुजर रहा है | राजनैतिक दलों और नेताओं के वायदों और आश्वासनों की भुलभुलिया में सामान्य मतदाता इतना भटक गया है कि सही निर्णय पर पहुंचना उसके लिए असंभव सा बन गया है |
चुनावों में पैसे और बहुबल , जाती और समुदाय तथा क्षेत्रीयता के बड़ते प्रभाव ने भी मतदाताओं के भटकाव को बढावा ही दिया है , राजनैतिक दलों का केवल चुनाव जितने तक सिमित रहने का दृष्टिकोण इस आग में घी का काम कर रहा है | आज अवस्था ये है कि प्रायः सभी राजनैतिक दल चुनाव के लिए उमीदवार घोषित करते समय उम्मेदवार की योग्यता और कार्य क्षमता को केवल और केवल चुनाव जीत सकने के आधार पर तय करते हैं |
चुनाव के बाद सरकार बनाते समय प्रायः राजनैतिक दल आपस में समझोता कर लेते हैं, जिससे जहाँ एक तरफ मतदाता खुद को ठगा सा अनुभव करते हैं वहीँ सत्ता प्राप्ति के इन अवसरवादी समझोतों के कारण देश के विकास पर भी प्रभाव पड़ता है | देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी कई बार ये दोहरा चुकें हैं कि सहयोगी दलों के असहयोग के कारण वे कितनी ही नीतियों को अमल में नहीं ला पा रहे हैं | वास्तव में देखा जाये तो आज़ादी के ६० वर्षों से भी अधिक के समय के बाद हमारा लोकतंत्र परिवर्तन चाह रहा है , देश अथवा राज्य में किसी एक राजनैतिक दल का शासन गुजरे ज़माने की बात बनने की दिशा में अगर्सर है |
देखा जाये तो इस समय देश को आवश्यकता भी है और लोकतंत्र के वास्तिक अर्थों के लिए ये अनिवार्य भी है कि हम अपनी वर्तमान के एकदलीय या बहुमतवाली साझा सरकार प्रणाली को बहुदलीय शासन प्रणाली में परिवर्तित कर लें | हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र का मतदाता चुनाव में इसलिए वोट नहीं करता है कि उसके द्वारा चुना हुआ व्यक्ति ये कह सके कि चूँकि वो विपक्ष में था इसलिए क्षेत्र का विकास नहीं कर पाया | बहुदलीय शासन का एक फायदा ये भी होगा कि हमें श्री मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों से राजनैतिक असहयोग जैसी बातें सुनने को नहीं मिलेंगी | इस सम्बन्ध में मेरे कुछ प्रस्ताव इस प्रकार है :
१] सर्वप्रथम अधिक वोट पाने के स्थान पर ये नियम होना चाहिए कि चुनाव जीतने के लिए ये आवश्यक हो कि उम्मेदवार को कुल मतदान के ५०% से अधिक वोट मिले हों | यदि किसी क्षेत्र विशेष में किसी भी उम्मेदवार को कुल मतदान के ५०% या उससे अधिक वोट नहीं मिलते हैं तो इन सभी उम्मीदवारों को उस चुनाव के लिए अयोग्य घोषित करते हुए उस क्षेत्र में १५ दिन के अन्दर फिर से चुनाव कराया जायेगा | इससे न केवल सामान्य नागरिकों में मतदान के प्रति जागरूकता बढेगी परन्तु साथ ही चुना हुआ नेता मतदान में रूचि रखनेवालों का वास्तविक अर्थों में प्रतिनिधि होगा | किसी जाती / समुदाय विशेष की , क्षेत्र विशेष में जनसँख्या के आधार पर उम्मेदवार निश्चित करने की प्रवर्ती पर भी लगाम कसी जा सकेगी |
२] हर राजनैतिक दल के लिए ये आवश्यक होगा कि वो चुनाव लड़ने वाले अपने सभी सदस्यों में से किन्ही तीन लोगों के नाम मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री के पद के लिए घोषित करें | चुनाव के बाद सदन के सभी सदस्य इन घोषत नामों में से , चुनाव जीतनेवाले किसी एक सदस्य को मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री के रूप में गुप्त मतदान के आधार पर चुनेगें | यह चुनाव दलगत आधार पर नहीं होगा अर्थात विधान सभा / लोक सभा का हर निर्वाचित सदस्य अपने विवेक के आधार पर वोट देगा |
३] मंत्री मंडल की सदस्य संख्या निर्वाचित सदस्यों के १०% के बराबर होगी | मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री के समान हर मंत्री के लिए भी विधान सभा / लोक सभा चुनाव में विजयी होना अनिवार्य होगा |
४] कृषि, विज्ञानं , वित्त , स्वास्थ और शिक्षा मंत्री अपने अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे | मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री को ये विशेष अधिकार होगा कि वे इसकेलिए किसी सामान्य नागरिक जिसने चुनाव न लड़ा हो को भी नियुक्त कर सकते है परन्तु किसी भी अवस्था में चुनाव हारे हुए या चुनाव न लड़ने वाले राजनेता को यह मंत्री पद नहीं दिया जायेगा और न ही इस प्रकार मंत्री बनाये गए व्यक्ति को सदन में मतदान करने का अधिकार होगा |
५] विधान सभा / लोक सभा की कुल सदस्य संख्या के २०% से अधिक स्थान जीतनेवाले सभी राजनैतिक दलों के सदस्यों को मंत्री मंडल में सम्मिलित होने का अवसर मिलेगा | मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री के लिए ये आवश्यक होगा कि वे इन सभी दलों में से सदन में दल की सदस्य संख्या के आधार पर कम से कम ५% और अधिकतम १०% सदस्यों को अपने मंत्री मंडल में सम्मिलित करें |
६] मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री अपने मंत्री मंडल के प्रत्येक पद के लिए दो दो उमीदवारों का नामांकन करेगा जिन में से किसी एक को सदन के सदस्य गुप्त मतदान द्वारा चुनेगें |
७] अकार्यक्षम मंत्री को पद से हटाने का अधिकार मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री के पास होगा परन्तु इसके लिए मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री को सदन में स्पष्टीकरण देना होगा और सदन के ५०% से अधिक सदस्यों द्वारा उस प्रस्ताव का अनुमोदन अनिवार्य होगा | मंत्रियों के विभाग बदलने के लिए (विशेषज्ञ मंत्री छोड़कर) मुख्य मंत्री / प्रधान मंत्री को न तो स्पष्टीकरण देना होगा और न ही सदस्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी |
८] रेल विभाग के समान ही कृषि, विज्ञानं, स्वास्थ और शिक्षा मंत्रियों को अपने अपने विभाग का वार्षिक लेखा
(Budget ) पेश करके सदन के बहुसंख्यक सदस्यों द्वारा उसे पारित करवाना अनिवार्य होगा |