Sunday, December 25, 2011

लोकपाल और हम

२२ दिसम्बर २०११ अब केवल मात्र एक तारीख न रहकर भारतीय इतिहास का एक  भाग  बन  गया  है,  यह  दिन  अब कई मैयानो में महत्वपुर्ण बन गया है :
१] इस दिन को अप्रेल २०११ से श्री अन्ना हजारे जी के नेत्रत्व में देश में चल रहे भिर्ष्ठाचार विरोधी जन आन्दोलन की सफलता का प्रथम सोपान भी कहा जा सकता है कियुंकि चाहे जैसा भी हो लोकपाल को कानून बनाने का प्रस्ताव इसी दिन संसंद में पेश किया गया है |
२] २२ दिसम्बर २०११ इसलिए भी महत्वपूर्ण बन गया है कियूं कि इसी दिन सारे देश ने देखा कि कुछ राजनैतिक दल और यहाँ तक की देश के शासक  दल के भी कुछ सांसद लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्था  में भी आरक्षण की मांग मनवाने के लिए इस हद तक भी जा सकते हैं कि केवल इसी कारण संसद की कारवाही भी स्थगित करनी पड़ जाये |
३] २२ दिसम्बर २०११ का महत्व इस बात से भी बढ जाता है कि संसद के नेता श्री प्रवण मुखर्जी ने कहा कि सरकार ने लोकसभा में लोकपाल का प्रारूप पेश कर अपना कर्त्तव्य निभा दिया है अब यह सांसदों पर निर्भर करता है वे इस प्रस्ताव कि किन किन बातों को कानून का रूप देना चाहते है, उनके ये शब्द देश में लोकतंत्र की उपस्थिति के प्रतिक है | वहीँ पर लोकपाल में आरक्षण के संबध में विपक्ष के नेता श्रीमती सुषमा स्वराज का ये कहना कि ऐसे कानून को पारित करने से किया फायदा जो संविधान के विपरीत हो और जिसे न्यायालय द्वारा निरस्त किये जाने की पूरी पूरी संभावना है, देश के कायदे कानूनों की व्यविहरिकता और उपयोगिता को रेखांकित करता है |
           जन्हाँ तक श्री अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों का प्रश्न है तो २२ दिसम्बर उनके लिए कोई ख़ुशी लाया हो ऐसा नहीं कहा जा सकता है कियुंकि उनके प्रस्तावित लोकपाल के कई मुदों को या तो लोकसभा में पेश किये प्रारूप में स्थान ही नहीं दिया गया है या फिर उनके लिए अलग से कानून बनाने का प्रस्ताव रखा गया है , जिन कुछ मुद्दों को इस प्रारूप में सम्मलित भी किया गया है, उनके साथ भी कई सारे किन्तु परंतुओं को जोड़ दिया गया है, इस कारण श्री अन्ना हजारे का इस प्रारूप को धोखा कहना और अपना आन्दोलन जारी रखने को तर्कसंगत कहा जा सकता है |
           हाँ देश की सामान्य जनता इस बात से खुश हो सकती है कि चाहे ये अन्ना हजारे के आन्दोलन को मिल रहे जनसमर्थन का असर हो या जैसा शासक दल दावा कर रहा है कि ये देश में बढ रहे भ्रष्ट आचरण के प्रीति उनकी चिंता और इसे दूर करने के प्रयासों का फल है, किसी भी हालत में सरकार शुरुआत तो करने को तैयार हुई है | "वो सुबह कभी तो आएगी " जैसे विश्वास पर पूरा पूरा जीवन गुजर देने वाले देश के सामान्य नागरिकों के लिए ये एक बड़ी सफलता है केवल मात्र ८-९ महीने में सरकार जन आन्दोलन का प्रभाव समझ पाई है |
            भारत के नागरिक इस बात को अभी भूले नहीं है कि किस प्रकार चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए किस प्रकार कमजोर कायदे कानूनों और अति सिमित स्वतंत्रता के बाद भी श्री टी एन शेषन ने देश के सभी राजनेताओं कि नींद हरम कर दी थी |
           देश का सामान्य नागरिक तो संभत्व इस आशा पर संतोष कर भी लेगा कि मुमकिन है कि लोकपाल के पद पर भी श्री शेषन जैसा कोई व्यक्ति विराजमान हो जाये जो इस सरकारी प्रारूप से बनाने वाले सिमित अधिकारों वाले कानून के सहारे भी भिर्ष्ट आचरण पर प्रभावी तंत्र के रूप में काम करके सामान्य नागरिकों को रिश्वत रुपी दानव के पंजो से बचा सके , परन्तु यहाँ पर प्रश्न है  अन्ना हजारे जी, जो अपना आन्दोलन जारी रखने जा रहे हैं और उन्हें मिलने वाले जनसमर्थन विशेषकर युवा वर्ग का समर्थन का ?
           बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि २७ से २९ दिसम्बर तक संसद में किया होता है कियुंकि अपने संख्या बल के आधार पर कांग्रेस सरकार अपने इस प्रारूप को लोकसभा में तो पारित करा सकती है परन्तु  असली  परीक्षा तो राज्य सभा में होगी |  एक और अवरोध भी सरकार को पार करना ही पड़ेगा और वो है तीन चोइथायी बहुमत का कियुंकि इस प्रारूप के साथ संविधान संशोधन भी जुड़ा हुआ है |

2 comments:

prakash said...

still it needs changes to fully eradicated corruption in india .

prakash said...

well, although after 42 yrs it has kept on the table of parliament ,it was really pressure of anna hazzare who got tremendous support of public ,that"s why govt did it early ,anyhow but still it needs lot of changes before passed.perhapes parliament do it or not .because mostly all parties are involved in this .