सफलता और मेरा दृष्टिकोण
1 . क्या यह कहना कि मैं कुछ नहीं कर सकता गलत नहीं है क्योंकि कोशिश तो ज़रूर की जा सकती है।
2 . चाहता तो हर कोई है परन्तु सफलता का संतोष सभी को नहीं मिलता है।
3 . घमंड और ग़र्व उपजाने वाली सफलता क्षण भंगुर और अवास्तविक होती है।
4 . सफलता आपकी आलोचना और नकारात्मक बातें सहने की क्षमता की प्रतीक है।
5 . सफलता निश्चित रूप से मंज़िल नहीं होती है क्योंकि कुछ और पाने की चाहत हमेशा शेष रहती है।
6 . सफलता के गर्भ से जब गर्व उत्पन होने लगे तो समझ लीजिये कि आपने गलत राह चुनी है।
7 . सफलता का प्रथम सोपान असफलता है। असफलता से भयभीत होने का अर्थ है सफलता की राह से दूर होना।
8 . सफलता सदैव अपने पथ के निर्माण पर निर्भर रहती है। दूसरों के पथ पर चलने वाले प्रायः असफल हो जाते हैं।
9 . असफलता का विश्लेषण सफलता का राज्य मार्ग है।
10. सफलता के लिये बिना पर्यायों वाले लक्ष्य और उसकी प्राप्ती के लिये संघर्ष क्षमता का होना अनिवार्य है।
11. यदि आपकी सफलता से आपके अपनो को खुशी नहीं मिलती है तो निश्चय जानिये कि आपकी सफलता अपूर्ण है।
12. सफलता की सीढ़ियां चढ़ते समय ध्यान रखें कि आपसे पूर्व भी लाखों करोड़ों इस सुखद स्पर्श का अहसास कर चुके हैं।
13. कोई भी सफलता अंतिम नहीं होती है क्योंकि जब भी हम ऊपर देखते है तो हमें अपने ऊपर एक रिक्त स्थान दिखाई देता है।
14. सफलता जब भी आती है तो गर्व की बाढ़ साथ लाती है इसीलिये नम्रता की नाव सदैव तैयार रखें।
15. सफलता का कारण ढूंढना अर्थात अपनी कार्य क्षमता और विचार प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करना।
16. सफलता और असफलता की राह एक समान होती है। जहां सफलता नयी मंज़िल तय करती है तो असफलता नया मार्ग बताती है।
17. कर्मठ व्यक्ती सदैव अपने कर्म में लीन रहता है इसलिये सफलता उसके पीछे भागती रहती है।
18. सफलता के लिये अवसर का इंतज़ार करने वाले इंतज़ार करते रहते हैं और अवसर निर्माण करने वाले सफल हो जाते हैं।
19. अपनी क्षमताओं के सीमित होने के अहसास के साथ जीने वाले हमेशा सफलता से दूर रह जाते हैं।
20. सफलता के लिये यह आवश्यक है कि आपके पास हर आपदा को अवसर के रूप में देखने का दृष्टिकोण हो।
21. सफल व्यक्ती यह याद नहीं रखता है कि सफलता कैसे मिली उसे तो यह याद रहता है कि वह असफल क्यों हुआ था।