लोकसभा चुनावों से लगभग चार माह पूर्व देश के नागरिकों का बहुत बड़ा वर्ग साधारण रूप से इस प्रश्न का सकारात्मक उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ अनुभव कर रहा है। केवल नागरिक ही क्यूँ स्वयं कांग्रेस के नीतिकार भी इस विषय में स्पष्ट मत प्रदर्शन से बचते नज़र आ रहें है , विपक्षी दल तो कांग्रेस के फिर से सरकार बना सकने की सम्भावनाओं को भी नकारते फिर रहें है।
यह सही है कि UPA सरकार महंगाई , भृष्ट्राचार, बेरोजगाजरी जैसे मुद्दों पर पूर्णतः घिरी नज़र आ रही है यहाँ तक की प्रधानमंत्री स्वयं असफलता की बात स्वीकार कर चुके है , फिर भी क्या देश की १२८ साल पुरानी और लगभग ६ दशकों तक केंद्र में शासन करनेवाली पार्टी को इस प्रकार से नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? क्या वास्तव में कांग्रेस के पास चुनावी पराजय के अतिरिक अन्य कोई विकल्प शेष नहीं है ?
वैसे कई राजनैतिक विश्लेषकों और कांग्रेस के पुराने नीतिकारों का मत है कि वर्त्तमान अवस्था में , विशेषकर आम आदमी पार्टी के लोकसभा चुनावों में भाग लेने की घोषणा के बाद , लोकसभा चुनावों की परिणिति एक त्रिशंकु संसद के रूप में होगी और अधिक सम्भावना है कि दिल्ली की तरह किसी एक अथवा अधिक दलों को समर्थन देकर या UPA के अनुभव के आधार पर कांग्रेस के सरकार में बने रहने की क्षीण सी आशा है।
आप चाहे तो इसे मेरा कांग्रेस प्रेम भी कह सकते हैं या फिर लम्बे अरसे से कांग्रेस के शासन में रहने की आदत परन्तु फिर भी न जाने क्यूँ मेरा मन कांग्रेस की इस प्रकार की अवहेलना से सहमत नहीं हो रहा है। मेरा कहना है कि देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी को इस तरह से न तो हाशिये पर धकेला जा सकता है और न ही यह उचित भी होगा। अब प्रश्न उठता है कि केंद्र में फिर से सरकार बनाने के लिए कांग्रेस पास कौन कौन से विकल्प शेष रहते हैं क्यूंकि कांग्रेस यह भी अच्छी तरह से जानती और समझती है कि यदि २०१४ में बीजेपी श्री मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो कांग्रेस केवल पांच वर्षों तक नहीं परन्तु एक लम्बे काल के लिए सत्ता से दूर हो जायेगी। कांग्रेस के नीतिकार इस बात से भी बड़ी अच्छी तरह से परिचित है कि सत्ता से दूर रहने का अर्थ है कांग्रेस के विघटन का आरंभ। इस बात को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि दिल्ली में अधिकांश विजयी विधायकों के विरोध के बाद भी, शीर्ष नेतृत्व ने , कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसनेवाली आम आदमी पार्टी को बिन मांगें ही समर्थन दे दिया। अब देखिये अप्रत्यक्ष रूप में कांग्रेस दिल्ली में शासन में हैं क्यूंकि आम आदमी पार्टी की सरकार कांग्रेस की वैसाखी पर ही टिकी हुई है। आम आदमी पार्टी भी इस वैसाखी को स्पष्ट अनुभव करती है सम्भवतः इसी कारण सरकार बनाने के साथ ही आम आदमी पार्टी की टिप्णियों और विरोध में अब बीजेपी को कांग्रेस की अपेक्षा अधिक स्थान मिलने लगा है।
हमारा इस लेख का उद्देश्य दिल्ली की सरकार नहीं, लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के पास उपलब्ध पर्यायों पर चर्चा करना है तो आइये देखते हैं कि कांग्रेस के पास कौन कौन से पर्याय शेष रहते हैं।
[१] कांग्रेस को सर्वप्रथम अपने प्रधानमंत्री के प्रत्याशी जो अघोषित रूप से श्री राहुल गांधी है की यथासम्भव शीघ्र घोषणा कर देनी चाहिए। इस घोषणा की देरी कांग्रेस को वही नुकसान पहुंचा सकती है जो बीजेपी को दिल्ली में डॉक्टर हर्षवर्धन के नाम को देर से घोषित करने के कारण हुआ था।
[२] कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव के लिए अकेले अर्थात बिना किसी अन्य दल के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के चुनाव लड़ने की घोषणा और तैयारी करनी चाहिए। मैं जनता और समझता हूँ कि कांग्रेस के पुराने नीतिकारों को यह बात न केवल हज्म नहीं होगी परन्तु साथ ही आत्मघाती भी अनुभव होगी परन्तु मेरा कहना है कि समय के साथ बदलाव भी आवश्यक है साथ ही यह भी समझना आवश्यक है कि वर्त्तमान परिस्थितयों में, चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ भी कांग्रेस के लिए वैसे भी इस चुनाव में जीत प्राप्त करने की सम्भावनायें कम ही हैं।
[३] जैसे समाचार मिल रहें कि कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति में परिवर्तन करने जा रही है : बैंगलोर में राहुल गांधी ने चुनाव घोषणापत्र के बारे विद्यार्थियों से चर्चा की , इसीलिए भी यह आवश्यक है कि २०१४ में कांग्रेस देश के सामने एक नए रूप में आये।
[४] जनवरी अंत अथवा अधिकतम फरवरी मध्य तक कांग्रेस को अपने सभी लोकसभा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर देनी चाहिए जिससे न केवल घोषित प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए समय मिलेगा साथ ही कांग्रेस को दल छोड़कर जानेवाले वर्त्तमान नेताओं से मुकाबला करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए भी प्रचुर समय प्राप्ति होगी।
[५] देश में युवा मतदाताओं की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को कम से कम २०० ऐसे प्रत्याशियों को अवसर देना चाहिए जिन की आयु ४० वर्ष या उससे कम हो।
[६] देश के प्रायः हर भाग में जनाधार रखनेवाली कांग्रेस के लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं है कि दल ऐसे व्यक्ति ढूंढ निकाले जो चाहे राजनीती में हो अथवा नहीं परन्तु अपने अपने क्षेत्र में जिनकी सामाजिक छवि स्वच्छ तथा प्रभावी हों। ऐसे प्रत्याशियों के चयन से कांग्रेस देश को यह सन्देश दे सकती है कि भृष्ट्राचार विरोधी उसकी निति केवल बातों तक सिमित नहीं है।
[७] कांग्रेस को देश के मतदाताओं को यह भी समझाने की आवश्यकता है कि प्रभावी सरकार के प्रबंधन के लिए युवा जोश के साथ अनुभव का भी महत्व होता है।
[८] कांग्रेस को देश के नागरिकों को स्पष्ट मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए गठबंधन सरकार के कारण निर्णयों पर होने वाले प्रभावों के विषय में शिक्षित करना चाहिए। दो बार केंद्र में तथा कई राज्यों में गठबंधन सरकार चलाने के अनुभव के कारण कांग्रेस के लिए यह कार्य कठिन नहीं है।
[९] कांग्रेस को अपने प्रत्याशियों में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषिज्ञों का समावेश करने के साथ साथ यह बात भी घोषित कर देनी चाहिए कि चुनाव जीतने के बाद इन्ही में से संबधित विभाग के मंत्री बनाये जायेंगें।
[१०] अंतिम परन्तु सब से अधिक महत्वपूर्ण कांग्रेस को चाहिए कि चाहे वह टेलीविजन हो या समाचार पत्र अथवा सोशल मीडिया हर जगह अपने चुनाव घोषणा पत्र के प्रचार और प्रसार पर अधिकाधिक ध्यान दें और यथासम्भव भुत की चर्चा से बचने का प्रयास करे।